क्या विचारों का अंतर
बना दे आदमी को बंदर
कुछ हटके सोचें
तो लगता है डर
आसमान काला है
फैला गिद्धों का साया है
तू तेरा मै मेरा
गिद्धों ने डाला शमसान में डेरा
हमने भी मुह अपना
ओर दूसरी फेरा
कुटिल कुचक्रों का यह जाल
फिर भी नही कभी मलाल
हे मानव खुद तू ही हलाल
तुम हमेशा किसी के विरुद्ध
ही क्यों होते हो एक
क्या इरादे तुम्हारे नही हैं नेक
अगर किसी के साथ मिल नही सकते
कोई बात नही
किसी के विरोध को
अपनी एकता का बहाना
क्यों बनाते हो
क्या एकता के लिये कोई
अन्य कारण नही ढूंढ पाते हो
कब सीखोगे तुम
विविध विचारों का आदर
किसी एक का नही है
विचारों पर अधिकार
है वह उर्वर मन की उपज
अपनी उपज मीठी
दूसरे की जहरीली
हे बुद्धिजीवी
विचारों के मन्थन से ही अमृत निकलेगा
पर उसके पहले का विष
कौन शिव निगलेगा
असहमति और विविध विचार
आते जीवन में बार बार
हर किसी को अपने विचार
रखने का है अधिकार
भिन्नता असहनीय
नही वह जीवन पद्धति है
विभिन्न स्थानो में जीवन की
अपनी अपनी रीति है
नये विचार पाना है
या फिर कूपमंडूक रह जाना है
तुझपर है
इतिहास वताता है
किसी विचारधारा को
तुम नही रोक
चाहे कितना रोको ताल ठोक !!
Sunday, December 20, 2009
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